http://ulooktimes.blogspot.in/2013/08/blog-post_5.html#comment-form में मेरे द्वारा रचित पंक्तियाँ आपके ब्लाग में भी दे रहा हूँ !
सुशील कुमार जोशी shared a link. August 5 “आज एक शख्सियत” >>>>>><<<<<<<
डा0 पाँडे देवेन्द्र कुमार पेशे से चिकित्सक कम एक समाज सेवक अधिक हो जाते है दवाई कम खरीदवाते हैं शुल्क महंगाई के हिसाब से बहुत कम बताते हैं लगता है अगर उनको गरीब है मरीज उनका मुफ्त में ही ईलाज कर ले जाते हैं बहुत ही कम होती है दवाईयां और लोग ठीक भी हो जाते हैं पछत्तर की उम्र में खुश रहते है और मुस्कुराते है सोच को पोसिटिव रखने के कुछ उपाय भी जरूर बताते हैं इतना कुछ है बताने को पर पन्ने कम हो जाते हैं काम के घंटों में मरीजों में बस मशगूल हो जाते हैं बहुत से होते हैं प्रश्न उनके पास जो मरीज से उसके रोग और उसके बारे में पूछे जाते है संतुष्ट होने के बाद ही पर्चे पर कलम अपनी चलाते हैं बस जरूरत भर की दवाई ही थोडी़ बहुत लिख ले जाते हैं कितने लोग होते हैं उनके जैसे जो अपने पेशे से इतनी ईमानदारी के साथ पेश आते हैं “हिप्पौक्रेटिक ओथ” का जीता जागता उदाहरण हो जाते हैं काम के घंटो के बाद भी उर्जा से भरे पाये जाते हैं बहुत से विषय होते हैं उनके पास किसी एक को बहस में ले आते हैं आज कह बैठे ब्रेन तैय्यार जरूर कर रहे हैं आप क्योंकि आप लोग पढा़ते हैं ब्रेन के साथ साथ क्या दिल की पढा़ई भी कुछ करवाते हैं दिल की पढा़ई क्या होती है पूछने पर समझाते हैं दिमाग सभी का एक सा हम पाते हैं उन्नति के पथ पर उससे हम चले जाते हैं समाज के बीच में देख कर व्यवहार दिल की पढा़ई की है या नहीं का अंदाज हम लगाते हैं जवाब इस बात का पढा़ने वाले लोग कहाँ दे पाते हैं शिक्षा व्यवस्था आज की दिमाग से नीचे कहाँ आ पाती है दिल की पढा़ई कहीं नहीं हो रही है बच्चों के सामाजिक व्यवहार से ये कलई खुल जाती है यही बात तो डाक्टर साहब बातों बातों में हम पढा़ने वालों को समझाना चाहते हैं ! ( http://champanaulaalmorauk.blogspot.in/ )
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August 5
“आज एक शख्सियत”
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डा0 पाँडे देवेन्द्र कुमार
पेशे से चिकित्सक कम
एक समाज सेवक
अधिक हो जाते है
दवाई कम खरीदवाते हैं
शुल्क महंगाई के हिसाब
से बहुत कम बताते हैं
लगता है अगर उनको
गरीब है मरीज उनका
मुफ्त में ही ईलाज
कर ले जाते हैं
बहुत ही कम
होती है दवाईयां
और लोग ठीक
भी हो जाते हैं
पछत्तर की उम्र में
खुश रहते है और
मुस्कुराते है
सोच को पोसिटिव
रखने के कुछ उपाय
भी जरूर बताते हैं
इतना कुछ है
बताने को पर
पन्ने कम हो जाते हैं
काम के घंटों में
मरीजों में बस
मशगूल हो जाते हैं
बहुत से होते हैं
प्रश्न उनके पास
जो मरीज से उसके
रोग और उसके
बारे में पूछे जाते है
संतुष्ट होने के बाद
ही पर्चे पर कलम
अपनी चलाते हैं
बस जरूरत भर
की दवाई ही
थोडी़ बहुत
लिख ले जाते हैं
कितने लोग
होते हैं उनके जैसे
जो अपने पेशे से
इतनी ईमानदारी के
साथ पेश आते हैं
“हिप्पौक्रेटिक ओथ”
का जीता जागता
उदाहरण हो जाते हैं
काम के घंटो के
बाद भी उर्जा
से भरे पाये जाते हैं
बहुत से विषय
होते हैं उनके पास
किसी एक को
बहस में ले आते हैं
आज कह बैठे
ब्रेन तैय्यार जरूर
कर रहे हैं आप
क्योंकि आप
लोग पढा़ते हैं
ब्रेन के साथ साथ
क्या दिल की
पढा़ई भी कुछ
करवाते हैं
दिल की पढा़ई
क्या होती है
पूछने पर समझाते हैं
दिमाग सभी का
एक सा हम पाते हैं
उन्नति के पथ पर
उससे हम चले जाते हैं
समाज के बीच में
देख कर व्यवहार
दिल की पढा़ई
की है या नहीं का
अंदाज हम लगाते हैं
जवाब इस बात का
पढा़ने वाले लोग
कहाँ दे पाते हैं
शिक्षा व्यवस्था आज
की दिमाग से नीचे
कहाँ आ पाती है
दिल की पढा़ई
कहीं नहीं हो रही है
बच्चों के सामाजिक
व्यवहार से ये
कलई खुल जाती है
यही बात तो
डाक्टर साहब
बातों बातों में
हम पढा़ने वालों
को समझाना चाहते हैं !
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धन्यवाद सुशील भाई , एक शानदार व्यक्तित्व से मिलाने के लिए !
ReplyDeleteलॉन्ग लिव डॉ पाण्डेय !
kamal ke udgar likhe joshi ji. apne is vyaktitwa ko sahi pahchna.bhagwan inhain sapariwar salamat rakhain.- deepak joshi.
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